रेड-ग्रीन सिग्नल- बिलासपुर रेलवे स्टेशन में कृपया यात्रीगण किनारे हो जाएं
बिलासपुर I आमतौर पर स्टेशन पहुंचने के बाद यह आवाज सुनाई देती है कि यात्रीगण कृपया ध्यान दें, फला से चलकर फला जगह जाने वाली यह ट्रेन इस प्लेटफार्म पर आएगी। लेकिन अभी जिस तरह के हालात हैं, उसे देखकर यहीं लगता है कि जल्द यह भी उद्घोषणा होने वाली है कि यात्रीगण कृपया किनारे हो जाएं, प्लेटफार्म पर मवेशी आ गए हैं।
दरअसल स्टेशन में ऐसा कोई दिन नहीं, जब मवेशी नजर न आते हो। पिछले दिनों तो एक साथ प्लेटफार्म एक पर मवेशियों का पूरा झुंड चलते नजर आया। इसके चलते यात्री कुछ देर तक खुद को असहज भी महसूस कर रहे थे। हालांकि इन बेजुबानों ने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया और शांत तरीके से स्टेशन के बाहर निकल गए। लेकिन यात्रियों में हैरानी इस बात की थी कि इतनी बड़ी संख्या में वह भी जोनल मुख्यालय स्टेशन में मवेशी कैसे पहुंचें? जिम्मेदारों के पास कोई जवाब नहीं था।
रेलवे में एक छोटे अधिकारी के तबादले का आदेश इन दिनों चर्चा में है। उनका तबादला बड़े साहब ने क्यों किया, इसकी अब तक पुष्टि नहीं हुई। लेकिन कर्मचारी बताते हैं कि एक समय था जब दोनों में खूब जमती थी। इसी बीच किसी बात को लेकर दोनों में अनबन हो गई। इसी कारण जब छोटे अधिकारियों के तबादले की सूची जारी करने की बारी आई तो उनका नाम भी जोड़ दिया गया। हालांकि ऐसी चर्चा है कि इस आदेश बाद उनके बीच शिकवा-शिकायत दूर हो गई। यही कारण है कि छोटे अधिकारी के तबादले के कई महीने बाद भी वह अभी जमे हुए हैं। उनकी जगह पर बड़े साहब ने नए छोटे अधिकारी को पदस्थ नहीं किया है। भीतर ही भीतर पक रही खिचड़ी को लेकर एक बार विभाग में रोज चर्चा हो रही है। कर्मचारी यह बात भी कह रहे हैं कि सेटिंग की प्रक्रिया में काफी दम है।
एक समय था, जब रेलवे स्टेशन यात्रियों की भीड़ से गुलजार हुआ करता था। कर्मचारियों पर काम का इतना बोझ रहता था कि उन्हें सांस लेने की फुर्सत नहीं मिलती थी। अब समय विपरीत हो गया है। काम का दबाव नहीं है। एक विभाग के कर्मचारियों का समूह तो पूरे समय यात्रियों का इंतजार करते रह जाता है। उनके पास कोई नहीं आते। अब इन कर्मचारियों के चेहरे पर अजब सी मायूसी नजर आती है। वह बेझिझक अपनी पीड़ा भी बताने से नहीं कतराते। यह स्थिति रेलवे से जुड़े एक और विभाग की है, जिनके कर्मचारी तो ट्रेनों में जांच करते-करते थक जाते थे। आज यही कर्मचारी प्लेटफार्म के चबूतरे पर मुफ्त की वाई-फाई से मोबाइल चलाकर नौकरी के आठ घंटे पूरे करते हैं। उनसे कोई पूछ लें तो वह यही कहते हैं कि जब सिस्टम खुद काम न करने की व्यवस्था कर रखा है तो बेवजह थकने का क्या मतलब।
गलत निर्णय, अब भुगतो खामियाजा
गलत निर्णय कभी-कभी भारी पड़ता है। रेलवे के साथ भी यही हुआ। रेलवे पर भी राजस्व प्राप्ति का दबाव है। इसके लिए नए-नए पैंतरे भी अपनाए जा रहे हैं। इन्हीं में एक पार्सल कार्यालय परिसर की एक फूड यूनिट है। जिसे भारी-भरकम शुल्क में इसलिए लिया गया, ताकि अच्छी कमाई हो जाए। बाद में समझ आया है कि महंगा सौदा है और कमाई तो दूर बचत खाते से जमा राशि निकल जाएगी। संचालक ने सरेंडर कर दिया। छह महीने में यूनिट का बंद होना चिंता का विषय है। अब दोबारा से इसे आवंटित करने का प्रयास हो रहा है। लेकिन, इस लुभावने आफर में कोई अपना हाथ नहीं फंसाना चाह रहा है। कोई आगे आए इसकी गारंटी भी नहीं है। दरअसल अधोसंरचना कार्य के चलते आए दिन ट्रेनें रद कर दी जाती है। इसके चलते ग्राहकी नहीं रहती। इस रेलवे स्टेशन में और भी यूनिट बंद होने के कगार पर हैं।