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28 किमी की वो सड़क जिसने भारत-पाकिस्तान में जंग करा दी थी, यह है पूरी कहानी

भारत-चीन की सीमा हो या भारत-पाकिस्तान की, आए दिन अलग-अलग मुद्दों पर विवाद होता ही रहता है. खासकर सीमा के आसपास ढांचागत सुविधाएं विकसित करने पर सभी देश एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहते हैं. ऐसा ही वाकया साल 1965 में हुआ था, जब 28 किमी लंबी एक कच्ची सड़क के कारण दोनों देशों में युद्ध हुआ था, जिसकी शुरुआत नौ अप्रैल को छोटी सी मुठभेड़ से हुई थी. इसकी वर्षगांठ पर आइए जान लेते हैं कि क्या था पूरा मामला.

 

भारत-पाकिस्तान के बीच साल 1965 के युद्ध की नींव कच्छ के एक बियाबान इलाके में सीमित मुठभेड़ के कारण पड़ी थी. उस रेगिस्तानी इलाके में कुछ चरवाहे कभी-कभी गधे चराने जाते थे तो कभी-कभी ही पुलिस वाले गश्त लगा लेते थे. वहां से पाकिस्तान के बादीन रेलवे स्टेशन की दूरी केवल 26 मील और कराची की दूरी रेल मार्ग से 113 मील थी. ऐसे में सामरिक नजरिए से उस इलाके पर पाकिस्तान की पकड़ मजबूत था.

वहीं, भारत के लिए कच्छ के रण में पहुंचना मुश्किल था, क्योंकि रास्ते बेहद दुर्गम थे. भारत की सबसे नजदीकी सैन्य ब्रिगेड अहमदाबाद में थी, तो इलाके के नजदीकी शहर भुज की दूरी सीमा से 110 मील थी. वहीं भुज रेलवे स्टेशन से अहमदाबाद 180 किमी दूर था.

 

भारतीय सीमा में होकर गुजरी थी पाकिस्तान की सड़क

बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कठिन सामरिक स्थिति के बीच भारतीय सुरक्षा बलों को पता चला कि पाकिस्तान ने 18 मील (लगभग 28 किमी) लंबी एक कच्ची सड़क बनाई है जो डींग और सुराई को जोड़ती है. सबसे खास बात यह थी कि यह सड़क कई स्थानों पर भारतीय सीमा में डेढ़ मील तक अंदर से गुजरती थी. इसका भारत की ओर से कूटनीतिक और स्थानीय स्तर पर विरोध भी जताया गया.

पाकिस्तान ने गलती मानने के बजाय गश्त शुरू कर दी

पाकिस्तान ने अपनी गलती मानने के बजाय अपनी 51वीं ब्रिगेड के तत्कालीन कमांडर ब्रिगेडियर अजहर को आदेश दे दिया कि विवादित इलाके में आक्रामक गश्त कराएं. हालात को देखते हुए भारत ने भी कंजरकोट के पास सरदार चौकी स्थापित कर दी. इस पर तत्कालीन पाकिस्तानी कमांडर मेजर जनरल टिक्का खान ने ब्रिगेडियर अजहर को आदेश दे दिया कि भारत की सरदार चौकी पर हमला कर नष्ट कर दिया जाए.

इस आदेश पर नौ अप्रैल की भोर में दो बजे पाकिस्तान की ओर से हमला कर दिया गया. पाकिस्तान की सेना को सरदार चौकी के साथ ही जंगल और शालीमार नाम की भारत की दो और चौंकियों पर कब्जे का आदेश दिया गया था.

14 घंटे की लड़ाई के बाद पीछे हट गए दोनों ओर के जवान

भारत की ​शालीमार चौकी पर तब सेना के जवान नहीं, स्पेशल रिज़र्व पुलिस के जवान तैनात थे. पाकिस्तानी सैनिक मशीन गन और मोर्टार फायर की आड़ में बढ़ रहे थे. ऐसे में पुलिस के जवान पाकिस्तान के सैनिकों का मुकाबला नहीं कर पाए. हालांकि, जब पाकिस्तानी सरदार चौकी की ओर बढ़े तो वहां तैनात पुलिसकर्मियों ने जमकर सामना किया. 14 घंटे तक उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों को रोके रखा. इस पर ब्रिगेडियर अजहर ने गोलाबारी रोकने के आदेश दे दिए. वहीं, सरदार चौकी से पुलिसकर्मी विजियोकोट चौकी चले आए जो दो मील पीछे थी.

भारतीय जवानों ने दोबारा बिना लड़े ही अपनी चौकी वापस पा ली

पाकिस्तान के अफसरों को इसका पता नहीं चला और उन्होंने भी अपने सैनिकों को पीछे बुला लिया. उधर, भारतीय जवानों को पता चल गया कि सरदार चौकी पर पाकिस्तानी सैनिक नहीं हैं. इसलिए शाम होते-होते एक बार फिर बिना लड़े ही भारतीय जवानों ने अपनी चौकी पर कब्जा कर लिया. इस पर बीसी चक्रवर्ती की एक किताब है हिस्ट्री ऑफ इंडो-पाक वार-1965. इसमें उन्होंने टिप्पणी की है कि पाकिस्तान के कमांडर ने इस ऑपरेशन को उतने ही अनाड़ीपन से अंजाम दिया, या जितना भारत के ब्रिगेडियर.

ब्रिगेड कमांडर ने दी थी हमले की सलाह

इस झड़प के बाद भारत को स्थिति की गंभीरता का आभास हो गया. इसके बाद मुंबई से मेजर जनरल डुन को कच्छ भेजा. उधर, पाकिस्तान ने भी अपनी पूरी 8वीं इंफैंटरी डिवीजन को कराची से अपने हैदराबाद शहर बुला लिया. तब भारत की ब्रिगेड के कमांडर की भूमिका में रहे लेफ्टिनेंट कर्नल सुंदरजी ने पुलिस की वर्दी में पूरे इलाके का निरीक्षण किया. इसके बाद भारत को सलाह दी कि पाकिस्तान के कंजरकोट पर हमला कर देना चाहिए. हालांकि, तब भारत सरकार ने उनकी बात नहीं मानी.

दोबारा पाकिस्तान की ओर से हुआ हमला

पाकिस्तान के ब्रिगेडियर इफ्तिकार जुनजुआ ने 24 अप्रैल को सेरा बेत पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया. इसके लिए पाकिस्तानियों ने दो टैंक रेजिमेंट और तोपखाने को लगा दिया था. इससे भारतीय जवानों को पीछे हटना पड़ा. दो दिन में ही भारतीय सैनिकों को बियर बेत चौकी से भी हटना पड़ा. हालांकि, बाद में ब्रिटेन के मध्यस्थता करने पर दोनों ओर की सेनाएं अपने-अपने पुराने मोर्चे पर आ गईं.

बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे शंकर बाजपेयी के हवाले से कहा है कि ये मुठभेड़ें भारत के हित में ही रहीं. पाकिस्तान के मंसूबों को लेकर भारत सजग हो गया. इसके तीन महीने बाद ही पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया. इसके तहत पाकिस्तान ने घुसपैठियों को कश्मीर में भेजा. भारत की सेना पहले से ही तैयार थी और पाकिस्तान की एक न चली. इसके बाद तो हर मोर्चे पर पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी.

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