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सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा लिखकर मोहम्मद इकबाल ने पाकिस्तान की मांग क्यों की?

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा… लिखने वाले शायर मोहम्मद इकबाल स्वाधीनता संग्राम के दौरान देश के बंटवारे के समर्थकों के साथ खड़े हो गए. इस्लाम को सभी धार्मिक अनुभवों का निचोड़ मानने वाले इकबाल का मानना था कि इस्लाम वास्तव में कर्मवीरता का सिद्धांत है जो जीवन को उद्देश्य देता है. हालांकि, इकबाल को देश का बंटवारा देखना नसीब नहीं हुआ और 21 अप्रैल 1938 को उनका निधन हो गया था. पुण्यतिथि पर आइए जान लेते हैं मोहम्मद इकबाल के किस्से.

 

 

भारत पर अंग्रेजों के शासनकाल में मोहम्मद इकबाल का जन्म नवंबर 1877 को पंजाब के सियालकोट में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है. इनके पिता शेख़ नूर मोहम्मद पेशे से दर्जी थे. उनको औपचारिक शिक्षा तो नहीं मिली थी पर स्वभाव से बहुत ही धार्मिक इंसान थे. मोहम्मद इकबाल की मां का नाम इमाम बीबी था. वह एक विनम्र स्वभाव की महिला थीं और हमेशा गरीबों और अपने पड़ोसियों की मदद करती रहती थीं. उनकी समस्याओं के समाधान के लिए भी हमेशा आगे रहती थीं. मोहम्मद इकबाल की मां की निधन उनके जन्मदिन यानी 9 नवंबर को साल 1914 ईस्वी में सियोलकोट में हो गया.

 

ब्रिटेन और जर्मनी में की पढ़ाई

मोहम्मद इकबाल की शुरुआत पढ़ाई सियालकोट के स्कूल-कॉलेज में हुई. इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए लाहौर यूनिवर्सिटी पहुंचे. वहां अरबी और दर्शनशास्त्र में स्नातक किया. साल 1899 में उन्होंने दर्शनशास्त्र में एमए की डिग्री पूरे पंजाब में अव्वल अंकों से हासिल की और गोल्ड मेडल से नवाजे गए. इसके बाद वह लाहौर के ओरियंटल कॉलेज में रीडर अप्वाइंट किए गए. इसके अगले कुछ सालों में वह एक अच्छे शायर के रूप में जाने जाने लगे.

 

साल 1905 में वह आगे की पढ़ाई के लिए यूरोप चले गए. पहले उन्होंने ब्रिटेन के कैम्ब्रिज में अध्ययन किया. फिर जर्मनी के म्यूनिख से डॉक्टरेट किया. साल 1907-08 में वह यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में अरबी के प्रोफेसर रहे. इसके साथ ही वह कानून की पढ़ाई भी करते रहे. साल 1908 में वकालत के लिए लाहौर लौट आए.

 

पहले ही हो गया था हालात का अंदाजा

पूरे देश में भ्रष्टाचार और दूसरी मुश्किलों को लेकर जो आवामी जंग वर्तमान समय में छिड़ी हुई है, इसका अंदेशा मोहम्मद इकबाल को पहले ही हो गया था. तभी तो उन्होंने लिखा था, वतन की फ़िक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है, तेरी बरबादियों के चर्चे हैं आसमानों में. न संभलोगे तो मिट जाओगे ए हिंदोस्तां वालों, तुम्हारी दास्तां भी न होगी दास्तानों में.

 

तीन शादियां की थीं

मोहम्मद इकबाल की तीन शादियां हुई थीं. इनकी पहली शादी करीम बीबी के साथ हुई थी. करीम बीबी एक गुजराती डॉक्टर खान बहादुर अता मोहम्मद खान की बेटी थीं. मोहम्मद इकबाल और करीम बीबी की एक बेटी मिराज बेगम और बेटा आफताब हुए. इसके बाद मोहम्मद इकबाल ने दूसरा विवाह किया. उनकी दूसरी पत्नी का नाम सरदार बेगम था. इनसे बेटे जाविद इकबाल का जन्म हुआ. मोहम्मद इकबाल ने अपनी मां के निधन के एक महीने बाद ही दिसंबर 1914 में तीसरी शादी की. उनकी तीसरी पत्नी का नाम मुख्तार बेगम था.

 

मोहम्मद इकबाल मानते थे कि यूरोप के लोग धन और सत्ता के लिए पागल हैं. केवल इस्लाम ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जो सही जीवन मूल्य का निर्माण कर सकता है. उनका मानना था कि इस्लाम ही अनवरत संघर्ष के जरिए प्रकृति के ऊपर इंसान को विजयी बना सकता है. इसीलिए उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए भारत के मुसलमान नव युवकों में यह भावना भरी कि उनकी एक अलग भूमिका है.

 

मोहम्मद इकबाल मानते थे कि केवल इस्लाम ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जो सही जीवन मूल्य का निर्माण कर सकता है. फोटो:ullstein bild/ullstein bild via Getty Images

 

मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग

यह साल 1930 की बात है. मोहम्मद इकबाल ने भारत में सिन्ध के भीतर उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त, बलूचिस्तान और कश्मीर को मिलाकर संयुक्त रूप से एक नया मुस्लिम देश बनाने का विचार रखा था. इसी से मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग शुरू हुई और पाकिस्तान की परिकल्पना सामने आई. हालांकि, पाकिस्तान नाम मोहम्मद इकबाल का दिया हुआ नहीं था. इसकी मांग साल 1933 ईस्वी में चौधरी रहमत अली ने रखी थी. उन्होंने ही मुसलमानों के लिए अलग देश का नाम पाकिस्तान रखा था.

 

अंग्रेजों ने दी थी सर की उपाधि

मोहम्मद इकबाल बहुमुखी प्रतिभा के रचनाकार थे. उनकी काव्य प्रतिभा से प्रभावित होकर ही अंग्रेजों की सरकार ने उन्हें सर की उपाधि से नवाजा था. मीडिया रिपोर्ट्स में मुरादाबाद के शायर मंसूर उस्मानी के हवाले से कहा गया है कि यह एक तरह से बदकिस्मती ही है कि मोहम्मद इकबाल को केवल मुसलमान शायर की तरह देखा गया. वह दावा करते हैं कि मोहम्मद इकबाल केवल इंसानियत के तरफदार थे. वह किसी एक देश या मजहब की तरफदारी नहीं करते थे.

 

मोहम्मद इकबाल की रचनाएं

मोहम्मद इकबाल ने साल 1909 ईस्वी में शिकवा की रचना की थी. इसमें उन्होंने मुसलमानों की खराब आर्थिक स्थिति की शिकायत खुदा से की है. इनकी रचनाएं मुख्य रूप से फारसी में हैं. अंग्रेजी में मोहम्मद इकबाल ने केवल एक किताब लिखी है, जिसका नाम है, सिक्स लेक्चर्स ऑन दि रिकन्सट्रक्शन ऑफ रिलीजस थॉट यानी धार्मिक चिन्तन की नवव्याख्या के सम्बन्ध में छह व्याख्यान. उर्दू में भी इनकी रचनाएं मिलती हैं. उर्दू में लिखी गईं इकबाल की किताबों में इल्म उल इकतिसाद (गद्द), बांग-ए-दरा, बाल-ए-जिब्रील और जर्ब-ए-कलीम आदि हैं. फारसी में उन्होंने असरार-ए-खुदी, रुमूज-ए-बेखुदी, पयाम-ए-मशरिक, जबूर-ए-अजम, जावीद नामा, पास चेह बेद कार्ड एआई अकवाम-ए-शर्क और अर्मागन-ए-हिजाज आदि की रचना की थी.

 

दिल्ली विश्वविद्यालय ने सिलेबस से हटाया चैप्टर

साल 2023 में मोहम्मद इकबाल को लेकर उस वक्त विवाद खड़ा हो गया था, जब दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने पाठ्यक्रम में बदलाव का फैसला किया था. दिल्ली यूनिवर्सिटी ने पाकिस्तान की मांग करने वाले मोहम्मद इकबाल से जुड़े चैप्टर को बीए में राजनीति शास्त्र विषय से हटा दिया था. विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा था कि छात्रों को इकबाल नहीं, राष्ट्रीय नायकों के बारे में पढ़ना चाहिए.

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