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नीतीश को किसी मौलाना की जरूरत नहीं, JDU ने क्यों किया वक्फ बिल का समर्थन?

वक्फ संशोधन बिल संसद से पास होने के बाद बिहार की राजनीति के केंद्र में एक बार फिर मुस्लिम हैं. बिल का समर्थन करने वाली JDU से उनकी पार्टी के ही नहीं बल्कि आम मुसलमान भी नाराज हैं. लेकिन जेडीयू ने बिहार में मुस्लिम वोटबैंक की चिंता छोड़कर अपनी रणनीति बदल दी है.

 

पार्टी के रणनीतिकारों ने बिहार चुनाव 2025 के लिए रणनीति बदलने के संकेत अभी से देने शुरू कर दिए हैं. नीतीश के करीबी मंत्री अशोक चौधरी ने साफ कह दिया है कि नीतीश को किसी मौलाना की जरूरत नहीं है.

17 प्रतिशत के लिए 83 प्रतिशत को नाराज नहीं करना चाहती

यानी अब जेडीयू 17 प्रतिशत मुस्लिम वोटबैंक के चक्कर में 83 प्रतिशत वोटबैंक को नहीं खोना चाहती है. जेडीयू ने संसद में वक्फ बिल पर समर्थन कर मुस्लिम वोट लगभग त्याग दिया है. यही कारण है कि नीतीश कुमार ने पहली बार आम मुस्लिमों की इच्छा के विपरीत काम किया है.

बिहार में जेडीयू के कई मुस्लिम नेता जेडीयू छोड़ चुके हैं तो कई अभी भी पार्टियों की नीति का विरोध कर रहे हैं. संभव है कि आने वाले समय में कई और पार्टी छोड़ेंगे.ऐसे में सवाल उठता है कि मुस्लिम वोटर नीतीश कुमार के साथ कब थे और उनके जाने से जेडीयू के सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा?

2014 के लोकसभा और 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू का खराब प्रदर्शन इसका प्रमाण है. मोदी विरोध में मुस्लिम वोटबैंक की फिराक में नीतीश ने बीजेपी से नाता तोड़ा लेकिन मात्र दो सीट पर सिमट गए. 2020 में जेडीयू ने विधानसभा चुनाव में 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, लेकिन उनमें से एक भी नहीं जीत पाया.

नीतीश कुमार की हालत ऐसी हो गई कि अल्पसंख्यक मंत्री बनाने के लिए मायावती की पार्टी बसपा से जीते जमा खान को पार्टी में शामिल कराना पड़ा और और मंत्री भी बनाया. 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM के पांच विधायक जीते, जबकि नीतीश कुमार का एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीत पाया. इससे पता चलता है कि बीजेपी के साथ रहने या विरोध में जाने का कोई खास असर नहीं होता. यही कारण है कि नीतीश कुमार ने वक्फ संशोधन बिल का खुलकर समर्थन किया. अब बिहार में MY समीकरण वाले इस स्थिति को और भुनाने में लगे हैं.

कितनी सीटें मुस्लिम बहुल?

बिहार की 25 से 30 सीटें मुस्लिम बहुल हैं, जहां मुस्लिम प्रत्याशी के आने के बाद खेल बिगड़ जाता है. खासकर, सीमांचल और मिथिलांचल में. यहां पर मु्स्लिम वोटर की पहली पसंद मुस्लिम कैंडिडेट्स ही होते हैं. क्योंकि, बिहार में 17 से 20 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. सीमांचल और मिथिलांचल के अलावा भागलपुर, सिवान, गोपालगंज और बेगूसराय में भी मु्स्लिम वोटर्स निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

बिहार में 30 से 60 प्रतिशत मु्स्लिम वोटर तकरीबन डेढ़ दर्जन विधानसभा सीटों पर हैं. ऐसे में इस बार जेडीयू का वक्फ बिल का समर्थन करने से सारे वोट आरजेडी, जनसुराज औ कांग्रेस में बंटने से इंकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि जेडीयू ने इस चिंता को त्याग दिया है.

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