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पाकिस्तान ने अगर सिंधु जल समझौते को UN में उठाया, तो किस ओर होंगे दुनिया के बाहुबली देश?

पहलगाम हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है और कई नेताओं ने इसको पूरी तरह खत्म करने की भी बात कही है, लेकिन ये इतना आसान नहीं है क्योंकि सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty – IWT) 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता में हुआ एक जल-बंटवारा समझौता है और इसका गारंटर वर्ल्ड बैंक है, जो सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों (रावी, सतलुज, ब्यास, सिंधु, चिनाब, झेलम) के पानी के इस्तेमाल को नियंत्रित करता है.

 

ये नदियां भारत से बह कर पाकिस्तान में जाती है और इतने विशाल पानी को एक दम से रोकना संभव नहीं है. क्योंकि ये देश में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर सकता है. जानकारों का कहना है कि अगर भारत पाकिस्तान का पानी रोकना चाहे, तो इसके लिए उसे बड़े पैमाने पर बांध और नहरें निकालनी होंगी, जिनके लिए कम से कम 10 सालों का समय लगेगा.

इस संधि के निलंबन के बाद पाकिस्तान ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की इच्छा जताई है. विश्व की लगभग सभी ताकतों ने पहलगाम हमले का विरोध किया है, लेकिन कूटनीतिक तौर पर किसी देश का किसी देश को समर्थन कई बिंदुओं पर निर्भर करता है. जिनमें उस देश के साथ एक देश के व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों के साथ-साथ भौगोलिक स्थिति भी मायने रखती है. इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र में अहम माने जाने वाले वीटो देशों का झुकाव किस तरफ होगा ये अहम साबित होगा.

 

वीटो पावर देशों में अमेरिका, रूस, चीन, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस शामिल हैं. जिनका इस मसले पर पक्ष लेना भारत और पाकिस्तान के प्रति उनके भू-राजनीतिक हितों, ऐतिहासिक संबंधों और क्षेत्रीय रणनीतियों पर निर्भर करेगा. भारत के चीन को छोड़ सभी वीटो देशों से संबंध अच्छे रहे हैं, लेकिन हाल ही में चीन के साथ संबंधों में भी सुधार हुआ है.

वीटो पावर देशों का क्या रहेगा रुख?

अमेरिका किस साइड जाएगा?

अमेरिका भारत को अपने रणनीतिक साझेदार मानता है, खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ भारत एक संतुलनकारी शक्ति है. साथ ही भारत सबसे बड़ी आबादी होने के साथ अमेरिका के लिए बड़ा बाजार भी है. इसके अलावा क्वाड (Quad) जैसे गठबंधनों और भारत के साथ मजबूत रक्षा व आर्थिक संबंधों की वजह से अमेरिका भारत का समर्थन कर सकता है.

 

हालांकि जानकार अमेरिका को भरोसेमंद दोस्त नहीं मानते हैं, क्योंकि पाकिस्तान के साथ अमेरिका के संबंध अफगानिस्तान और आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए अहम हैं. साथ ही चीन के बढ़ती ताकत को रोकने के लिए अमेरिका पाकिस्तान को बैलेंस करने की कोशिश करता रहता है.

 

रूस है भारत का दोस्त

रूस और भारत के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत रिश्ते रहे हैं, जिनमें रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में संबंध उदाहरण योग्य हैं. USSR के समय से ही भारत रूस का विश्वसनीय साझेदार रहा है और हाल के सालों में भी दोनों देशों ने ब्रिक्स (BRICS) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों पर सहयोग किया है.

 

भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद यूक्रेन युद्ध में रूस की निंदा करने से अपना बचाव किया है. ऐसे में उम्मीद है कि रूस का झुकाव भारत की तरफ ही रहेगा.

 

वहीं अगर हम पाकिस्तान और रूस के संबंधों की बात करें तो ये हाल में बेहतर हुए हैं, लेकिन ये भारत के साथ संबंधों की तुलना में कम गहरे हैं. रूस पाकिस्तान को अपना दोस्त तो देख सकता है, लेकिन वह संयुक्त राष्ट्र में भारत के साथ अपने रणनीतिक हितों को प्राथमिकता देग

 

चीन को मानता है पाकिस्तान अपना दोस्त

चीन और पाकिस्तान दोनों के बीच हमेशा से दोस्ती रही है. इसकी एक वजह दोनों ही देशों के भारत के साथ खराब रिश्ते भी रहे हैं. हालांकि चीन ने भी पहलगाम हमले की निंदा की है. पाकिस्तान चीन के सामान के लिए सेंट्रल एशिया और यूरोप जाने का आसान रास्ता है, जिसको दोनों देश और सुविधाजनक बनाने में लगे. चीन ने पाकिस्तान में CPEC के जरिए अरबों का निवेश कर रखा है, जिसके कारण वह नहीं चाहेगा के पाकिस्तान किसी मुश्किल में आए.

 

चीन भारत को क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता रहा है और दोनों देशों के बीच सीमा विवाद भी दश्कों पुराना है. हालांकि हाल के दिनों में स्थिति में सुधार आया है, लेकिन इसके पाकिस्तान को समर्थन करने की संभावनाएं बनी हुई हैं.

 

ब्रिटेन किस तरफ

ब्रिटेन के भारत और पाकिस्तान दोनों से ही मजबूत रिश्ते हैं. हालांकि भारत ब्रिटेन के लिए महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है, लेकिन वहां पाकिस्तान की बड़ी प्रवासी आबादी रहती है और उनके दबाव की वजह से ब्रिटेन का खुलकर पाकिस्तान के खिलाफ जाना मुश्किल है. इतिहास पर नजर डालें तो ब्रिटेन ने दोनों देशों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने की कोशिश की है.

 

फ्रांस का रुख

फ्रांस और भारत के बीच रक्षा साझेदारी और रणनीतिक सहयोग मजबूत है, हाल में भारत ने राफेल विमान को लेकर फ्रांस के साथ सौदा किया है. वहीं फ्रांस की राष्ट्रपति मैक्रोन और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के बीच भी गहरे संबंध हैं.

 

फ्रांस के पाकिस्तान के साथ संबंध सीमित हैं. फ्रांस आतंकवाद और इस्लामिक कट्टरवाद के मुद्दों पर सख्त रुख अपनाता रहा है, जिसकी वजह से उसका पाकिस्तान की तरफ झुकना बेहद मुश्किल है.

 

सिंधु समझौता को लेकर संयुक्त राष्ट्र में कितना मजबूत है भारत?

अगर ये तनाव संयुक्त राष्ट्र में पहुंचता है, तो वीटो पावर देशों में से रूस और फ्रांस संभवत भारत का साथ देते दिख सकते हैं. वहीं चीन का पाक की तरफ झुकाव दिखने की उम्मीद है. वहीं अमेरिका और ब्रिटेन दोनों देशों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करेंगे.

 

हालांकि, इस बात को समझना जरूरी है कि इस मसले को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र से पहले विश्व बैंक और स्थायी सिंधु आयोग है. संयुक्त राष्ट्र में यह मसला तभी पहुंचेगा, जब दोनों देश संधि के ढांचे के अंदर इसको सुलझाने में पूरी तरह नाकाम हो जाएंगे. इसके अलावा, संधि को रद्द करने या संशोधन करने का कोई भी कदम वियना संधि संहिता (Vienna Convention on the Law of Treaties) के तहत जटिल होगा, और भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है.

पहलगाम हमला

कश्मीर घाटी के पहलगाम 22 अप्रैल को करीब 4 से 5 आतंकियों ने पर्यटकों पर हमला कर दिया था. उनकी गोलाबारी में कम से कम 26 लोग मारे गए हैं और दर्जनों घायल हो गए हैं. इस हमले के बाद से पूरे भारत में गुस्सा है और लोग सरकार से दोषियों को सजा देने और सुरक्षा पुख्ता करने की मांग कर रहे हैं, ताकि भविष्य में ऐसी घटना न हो.

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